Tuesday, April 8, 2014

सफर__________बादल

अश्क़ों से हर्फो का सफर तय कर लिया,
जबसे तन्हा रहने का फैसला हमने कर लिया….

तमाशा बन गए थे जिस अपने के लिए,
उसकी बज्म से खुदकों रुकसत कर लिया....

मोहब्बत देके नाम उसकी, जफाओ को,
हमने खुदको जमाने मे बदनाम कर लिया....

दर्द-ए-जिंदगी की गलियो की ठोकरे छोड़,
खुदा के दर को हमने अपना घर कर लिया....

नहीं दिखाई देगा अब कोई फरेबी अक्स,
हर दरो दीवार से हमने पर्दा कर लिया....

कोरे कागज पर भी नज़र आते है मेरे अल्फ़ाज़,
जबसे लहू को अपने रोशनाई हमने कर लिया....


बादल