चहचहाते पंछी
कानों की प्यास बुझाती
उनकी मधुर आवाज़
हवा मे लहराती
उस बूढ़े पेड़ की
हर जवान साखा
पुदीने के खेत
उनकी ठंडी हवा
और मोहक खुशबू
यादे
आज भी मुझे
तुम्हारे गाँव खींच लाती है
अपनी जंगह
सब मौजूद हैं
नहीं है
तो तुम्हारा
छत पर वो सूखता दुपट्टा
खुशियों से सराबोर घर
छनकती पाजेब
खनकती चूड़ीयां
और गुनगुनाते हुए तुम
हाँ तुम
“बादल”