लेकिन फिर भी बहुत चुप चाप सा मै हु,
जाने की उमर तो नही है मेरी,
फ़िर भी ना जाने आज मरने का मन सा क्यों है,
बहुत जी लिया बहुत सह लिया मैंने,
जाने अब क्यों जीने की इच्छा नही है,
साथ जितना भी था अपनों का पा लिया मैंने,
कुछ अब खोने का डर सा नही है,
बहुत ढूँढ लिया बिजली को जीवन में मैंने,
ना जाने अब उसे पाने का इंतज़ार क्यो नही है,
क्या पाया क्या खोया इस जीवन में,
अब किसी पाप और पुनये का भय नही है,
हो सकता है ये आखरी गीत हो मेरा,
गुनगुनाने का अब कोई अर्थ नही है,
बहुत कुछ है मन मे आज मेरे,
जाने अब क्यों जीने की इच्छा नही है...........
बादल
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