बेमाता के लिखे लेख समझ नही पा रहा हू मैं,
जितना रहना चाहता हू पास उतना दूर जा रहा हू मैं,
पल पल सिसकती जिंदगी से अब फरियाद करता हू मैं,
क्यो मिटा नही देती मुझे अब मारना चाहता हू मैं,
हर रात बहुत हसीन खवाब देख चुका हू मैं,
हर उस खवाब को अब टूट.ते हुए देख रहा हू मैं,
तड़प बेहिसाब सिने मे दफ़न किए हू मैं,
फिर भी उस काफ़िर मौत के इंतज़ार मे जिंदा हू मैं...
फिर भी उस काफ़िर मौत के इंतज़ार मे जिंदा हू मैं...
फिर भी उस काफ़िर मौत के इंतज़ार मे जिंदा हू मैं...
बेमाता > किस्मत को लिखने वाली देवी
बादल
Wednesday, July 28, 2010
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