Tuesday, March 5, 2013

इंसान____________बादल




ज़िद करना चाहता हु, रोना चाहता हु,
फिर माँ के दिलासे पे, उसके आँचल मे चुप होना चाहता हु,

घूमना चाहता हु, भागना चाहता हु,
उँगली पकड़ के चलना सीखा, उस बाप के कंधे पे बैठ फिर दुनिया देखना चाहता हु,

नफरत हो गयी है, नकाबो के शहर मे सांस भी लेने से,
सच्चे ओर इंसानियत से भरे शहर की महक लेना चाहता हु,

मरीचिका बन गयी है जो ज़िंदगी रोज़-मररा मे,
दो पल सकु से बैठ के मै गुंगुनाना चाहता हु,

खेलते है जो धर्म और समाज के नाम पे अपनो के विशवास से,
मैं भी इंसान हु ये उन ठेकेदारो को बताना चाहता हु,

उस बाप के कंधे पे बैठ फिर दुनिया देखना चाहता हु,
सच्चे ओर इंसानियत से भरे शहर की महक लेना चाहता हु...........................बादल 






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