आओ तुम्हें कुछ अतीत की यादों में समेट लु,
गुनगुनाए थे जो गीत उनकी मिठास मे तुम्हें घोल लु,
मन्नतों के हर परांगण मे जो मांगी थी दुआऐ,
हर उस दुआ की सलामती की कसम तुमसे ले लु,
बांधे थे जो अनगिनत धागे अपनी सलामती के,
आओ उन कच्चे धागो मे तुम्हें जन्मो तक बाँध लु,
लगाया था जो प्यार का दरक्थ आँगन मे अपने,
उसके मीठे फलो को संग मैं तुम्हारे बाँट लु,
लहलाते हुए खेतो मे लहराता हुआ तुम्हारा वो
आँचल,
आओ उस आँचल को तुम संग मैं सांझा कर लु,
बसाया था जो गुलिस्ता बड़े अरमानो से हमने,
तुम संग आज मैं उस की हर चोखट पार कर लु,
आओ तुम्हें कुछ अतीत की यादों में समेट लु,
उन कच्चे धागो मे तुम्हें
जन्मो तक बाँध लु....................बादल
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