Saturday, October 25, 2014

रस्म-ऐ-चराग  महोब्त के, जलाऊँ कैसे....
दिल के जख्म महफिल मे, सुनाऊँ कैसे....
रोशन थी मेरी ख्वाबगाह जो तेरे वजूद से,
उस ख्वाबगाह को तुझ बिन, सजाऊँ कैसे....  बादल


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