Friday, January 16, 2015

ठिठुरती रात की अब ठिठुरन नहीं जाती,
तेरे बेगैर नींद अब रात नहीं आती,
बदलते रहते है करवठ तुझे सोच-सोच कर,
मगर ज़ालिम रात की सहर नहीं आती।


बादल


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