Monday, April 13, 2009

भंवरा__________________बादल

जी चाहता है कदमो मे तेरे सर झुका दु,
कतल कर के खुद को तुझे अपने प्यार का तोहफा दे दु,

तनहा था जब तक ना आये थे तुम जिन्दगी मे,
भागीरथी बन के जीवन को मेरे अंतिम रूप दे दो,

बहुत खाली खाली पड़ा था ये घर मेरा तुम्हारे बिना,
अपने रूप और गुणों से इसे बरहमांड की तर्हें सजा दो,

तड़प थी होंठो पे तुम्हारा नाम लेने की बहुत,
आज जमी और गगन की इस तड़प को तुम खुद से मिटा दो,

ओस की बूँद की तर्हें गुमनाम हो चुकी थी जो जिन्दगी मेरी,
सावन की फुहार बन उस सूखे जीवन को नयी रोनक दे दो,

नाच उठू मयूर की तर्हें आज सारे गुलशन मे,
जो एक बार अपने आलिंगन का स्पर्श मुझे तुम दे दो,

रोम रोम ले रहा है आज अपने राही का नाम बार बार,
ऐ राही आज अपने इस मुसाफिर को मंजिल का नज़ारा दे दो,

सज जाऊं तेरे चहरे पे सितारों की चमक की तर्हें,
एक बार चांदनी रात की ठंडक तो रूह को दे दो,

भंवरा बन झूमना चाहता हु तेरी नरम पंखुडियो पे,
तुम बन शमा गर परवाने को फ़ना हो जाने की इजाजत दे दो,


तुम बन शमा गर परवाने को फ़ना हो जाने की इजाजत दे दो...........



बादल

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