Monday, December 22, 2014
Tuesday, November 18, 2014
Sunday, November 9, 2014
Friday, November 7, 2014
नीर का ख्वाब.......
नीर का ख्वाब.......
नीरज अपनी सुर्ख आंखो मे आंशुओं को
जबर्दस्ती रोकते हुए...खुद में बड़बड़ाता जयपुर से दिल्ली आ रही बस मे सबसे पीछे वाली सीट के एक
कोने मे दुबका सा बैठा अपने बीते हुए
कुछ घंटो को याद करके खुदकों ऐसे धीत्तकार रहा था
मानो उसने जयपुर आ कर कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया हो। करवाचौथ से एक दिन पहले कैसे अपनी गाढ़ी कमाई से रजनी की पसंद के कपड़े और क्षृंगार का हर सामान खरीदा था और अगले दिन के सपने बुनते हुए कब रात गुजर गयी ये पता ही
नहीं चला था। सुबह सवेरे ही नीरज रात के सपनों
को सच करने जयपुर वाली बस मे सवार हो गया था। नीरज बार बार अपनी घड़ी को देखता और
सोचता कंही देर न हो जाए पहुँचने मे और फिर रजनी की बाते सोचते हुए मुस्कुरा देता। रजनी ने पूछा था फोन पर की
नीरज तुम करवाचौथ पर मुझसे मिलने जयपुर आ रहे हो
ना..... तो नीरज ने ये सोच कर रजनी को मना कर दिया था की
अचानक जा कर वो रजनी के होंठो पर मुस्कुराहट बिखेर देगा। कितना खुश था नीरज आज, और ऊपर से ये जयपुर जैसे सात समुन्दर पार हो गया
था, आने का नाम ही नहीं ले रहा था। आखिर बस
समय से जयपुर पहुँच ही गयी और नीरज ने बस से उतर कर तेजी से अपने कदम रजनी के घर की तरफ बढ़ा दिये थे। थोड़ी देर बाद ही जानी पहचानी घंटियो
की आवाज़े नीरज के कानो मे पड़ने लगी जो थोड़ी दूर पर एक
मंदिर से आ रही थी और उन्हे सुन कर नीरज के कदम और तेज हो गए
थे। आखिर नीरज मंदिर पहुँच गया जो की उसकी मंजिल भी थी। नीरज और रजनी एक साल पहले
तक रोज इसी मंदिर मे मिलते और अपने प्यार की सारी मन्नते यही मांगते थे, एक साल पहले नीरज का तबादला दिल्ली के ऑफिस मे
हो गया था और ना चाहते हुए भी उसे रजनी से दूर होना पड़ा इस वादे के साथ की दूरियाँ
सिर्फ दूरी की होगी ना की दिल और उनके
प्यार की, नीरज ने अपनी घड़ी देखी अभी
रजनी के आने मे थोड़ी देर थी रजनी रोज सुबह 9 बजे मंदिर होकर ही ऑफिस जाती थी.....
नीरज मंदिर मे महादेव जी के दर्शन कर उसी बेंच पर जा बैठा जंहा वो और रजनी हमेशा
बैठ कर घंटो बाते करते थे..... नीरज के मन मे एक
तरफ समय से पहुँचने की शांति थी तो दूसरी तरफ जैसे-जैसे रजनी के आने
का टाइम हो रहा था उसके दिल की धड़कने बढ़ रही थी। कुछ देर के इंतज़ार के बाद नीरज के
मन की मुराद पूरी हो गयी.... सामने गली से रजनी मंदिर की तरफ चली आ रही थी, रजनी ने गहरे हरे रंग का सलवार कमीज पहना हुआ था
जो रजनी पर खूब फब रहा था, अचानक रजनी के कदमो की
रफ्तार तेज हो गयी थी जैसे उसे नीरज के होने का आभाष मिल गया हो। नीरज ने भी बेंच से उठकर अपने कदम रजनी की तरफ बढ़ा दिये..... फिर वो पल जिसका इंतज़ार
नीरज कल से कर रहा था वो आ ही गया, नीरज और रजनी आमने सामने खड़े थे, रजनी की हैरानी उसके चेहरे से साफ झलक रही थी... फिर अचानक ही रजनी नीरज
पर बरस पड़ी ये क्या तरीका हुआ आने का बता कर नहीं आ सकते थे और हाँ पूछा भी तो था
कल तुमसे फिर आज अचानक क्यूँ आ गए... मना किया हुआ है न की मुझे इस तरह की बाते
पसंद नहीं फिर नीरज तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसे आने की.... गुस्से से भरे इतने
सवाल सुन कर नीरज को तो जैसे साँप सूंघ गया था। जैसे तैसे खुद को संभालते हुए नीरज
ने लगभग बड़बडाते हुए कहा करवाचौथ था तो सोचा की.... रजनी बात को काटते हुए चिल्लाई... करवाचौथ था
तो क्या, बिना बताये आ कर तुमने बहुत
बड़ी गलती की है और आज के बाद तुम्हारे और मेरे बीच का हर रिस्ता और हर बात खतम, ये सब सुन कर नीरज को कुछ समझ नहीं आ रहा था की
रजनी को अचानक क्या हो गया और वो ऐसे जानवरो सा बर्ताव उसके साथ क्यूँ कर रही है।
रजनी जो मन मे आया वो नीरज को कहे जा रही थी और नीरज तो जैसे बर्फ हो गया था.... बहुत
हिम्मत कर नीरज ने रजनी को एक बड़ा सा पैकेट जो वो साथ लाया था देने की कोशिश की
मगर रजनी ने वो पैकेट लेने से इंकार कर दिया और कहा बता कर आते तो वो बहुत खुश
होती मगर अब सब खतम तो खतम.... और मुझे लेट हो रहा है इसलिए अब तुम जाओ और मुझे भी
जाने दो और भुगतो बता कर न आने की सजा ज़िंदगी भर। ये कह कर रजनी ने अपने ऑफिस के रास्ते पर कदम बढ़ा दिये और नीरज भी माफी मांगते मांगते उसके
पीछे पीछे चलने लगा..... चलते चलते नीरज रजनी को अपने प्यार, दुआ, त्याग और न जाने किस किस बात का वास्ता दे कर शांत होने के लिए कह रहा था
कि तभी एक मोटर साईकिल रजनी के बिलकुल पास आकार रुकती है और उस पर सवार वो लड़का
मुस्कराते हुए रजनी को... गुड मॉर्निंग...
आज तो कमाल लग रही हो.... कहता है, ये शब्द सुन कर रजनी रुक जाती है और हल्की सी मुस्कुराहट के साथ उस लड़के
को गुड मॉर्निंग कहती है.... ये सब देख नीरज ने रजनी से पूछा ये साहब कौन है तो
रजनी ने जवाब दिया कि इन साहब का नाम फिरोज है और अब यही सब कुछ है मेरे.... और
कुछ पूछना है?.... नीरज के अंदर एक साथ
लाखो तूफान और लाखो सवाल उमड़ पड़े। इस से पहले नीरज कुछ बोलता रजनी ने फिरोज को कहा
फिरोज मिलिये इन साहब से ये है नीरज जी... जिनके बारे मे मैंने आपको बताया था और
आज साहब जी करवाचौथ का तोहफा देने आए है शायद साहब दिल्ली जाकर ये भूल गए थे कि
तोहफे के सिवा गर्ल फ्रेंड को और भी बहुत कुछ चाहिए होता है, ये शब्द कह कर रजनी फिरोज के साथ नीरज को देखते
हुए हसने लगी और नीरज के हाथ से पैकेट छिन कर उसमे रखा सारा करवाचौथ का समान
रास्ते पर बिखेर दिया और नीरज को कहा अब समझ आया बता कर ना आने का नतीजा और खबरदार
जो आज के बाद मुझसे मिलने या मुझे फोन करने कि हिमाकत कि। ये कह कर रजनी फिरोज के
साथ मोटर सइकिल पर बैठ चली गयी। बहुत देर तक नीरज वही जड़ होकर खड़ा रहा फिर करवाचौथ
के लिए लाया सारा सामान उठा कर अपने बैग मे डाल लिया और टूटे कदमो से बस स्टैंड कि तरफ चल पड़ा।
नीर ( नीरज + रजनी )
Thursday, October 30, 2014
Saturday, October 25, 2014
Wednesday, October 8, 2014
Saturday, October 4, 2014
Thursday, October 2, 2014
Sunday, September 28, 2014
Thursday, September 25, 2014
Tuesday, September 23, 2014
Saturday, September 20, 2014
Friday, September 19, 2014
Wednesday, September 17, 2014
तन्हा
पुकार लिया तुझे, तेरे शहर के हर कूचे में....... मगर हर बार तेरे बादल की आवाज़ तन्हा लौट आई.....
वादा खिलाफी
तुझे पता था ना कि मैं अकेला नहीं जी पाऊँगा ... फिर अकेले ये दुनियाँ छोड़ने कि वादा खिलाफी क्यूँ कि.....
Tuesday, August 12, 2014
Monday, August 11, 2014
आज
बहुत थकान होने के बावजूद
ना जाने क्यूं
निंदिया रानी मुझसे रूठी थी,..
तनहा लेटे आकाश को तकते हुए
अनायास ही नजरे
पूर्ण चंद्रमा पर जा
टिकी...
जो आते जाते बादलो के
साथ ठिठोली कर रहा था,
अचानक ही सब याद आ
गया...
जैसे कल ही की तो बात
थी,..
जब इस चंद्रमा को
निहारते और बाते करते
कब पंछी चहकने लगते थे
पता ही नहीं लगता था,.
तुम्हारे साथ खुली आंखो
से
ऐसी ही चाँदनी रातों
में
ना जाने कितने
सपने बुन लिए थे मैंने...
पर
आधुनिक परीवेश की
तुम्हारी लालसा...
न जाने कब तुम्हें गाँव
की छोटी छत से उड़ा कर,
शहर की बुलंद इमारतों
तक ले गयी....
खैर छोड़ो ...
अब तो तुम्हें ये
चंद्रमा
और भी बड़ा नज़र आता होगा
है ना,... !!,.... बादल
Wednesday, August 6, 2014
गौ माता
गौ माता को समर्पित मेरी पहली रचना,
उम्मीद है आप सभी को पसंद आएगी !
गलती के लिए क्षमा पार्थि......
बड़ी भूल की माता, जो तुझे समझ नहीं पाया,
दुनिया के चक्कर मे जो तेरा नाम नहीं गाया,
पीड़ा की पुकार ने तेरी, बार बार मुझे बुलाया,
बन बैठा था शायद बहरा, जो तुझे सुन नहीं पाया….
अब जाना जीवन क्या है, जबसे दुलार तेरा पाया,
नित्य करूंगा सेवा तेरी, मेरा मान है तूने बढ़ाया,
छत्रिए होके जो भुला था याद वो फर्ज़ दिलाया,
तेरी रक्षा का वचन भरके जीवन सफल बनाया....
आशीर्वाद दे माता मुझको, तूने है जो पंथ दिखाया,
नहीं बहने दूंगा लहू, शरीर मे जबतक प्राण समाया,
शीश उतार लूँगा धड़ से, जो दुख किसी ने पहुचाया,
कोटी कोटी नमन तुझे, जो बेटा मुझे अपना बनाया....
बादल
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