आज
बहुत थकान होने के बावजूद
ना जाने क्यूं
निंदिया रानी मुझसे रूठी थी,..
तनहा लेटे आकाश को तकते हुए
अनायास ही नजरे
पूर्ण चंद्रमा पर जा
टिकी...
जो आते जाते बादलो के
साथ ठिठोली कर रहा था,
अचानक ही सब याद आ
गया...
जैसे कल ही की तो बात
थी,..
जब इस चंद्रमा को
निहारते और बाते करते
कब पंछी चहकने लगते थे
पता ही नहीं लगता था,.
तुम्हारे साथ खुली आंखो
से
ऐसी ही चाँदनी रातों
में
ना जाने कितने
सपने बुन लिए थे मैंने...
पर
आधुनिक परीवेश की
तुम्हारी लालसा...
न जाने कब तुम्हें गाँव
की छोटी छत से उड़ा कर,
शहर की बुलंद इमारतों
तक ले गयी....
खैर छोड़ो ...
अब तो तुम्हें ये
चंद्रमा
और भी बड़ा नज़र आता होगा
है ना,... !!,.... बादल
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