मेरी जुबां से…
जो सुनना चाहते हो तुम,
फकत कुछ शब्दो के सिवा…
अब उनका कोई वजूद नही है,
बात तो तब होती…
जब खुद महसूस कर पाते…
शांत बादल के ,
अन्तर्मन की वो लांखों वेदनाएं…
दम तोड़ती…
वो इंतज़ार मे आँखे,
वो सावन की जलन…
अस्क़ो को बूँदो मे छुपाता मन…
हर रात …
सन्नाटे मे सिसकिओ का गूंजना,
तड़प की आह पर...
वो तेरे नाम का निकलना…
तेरी तस्वीर से…
खूब सारी शिकायत करना,
दिन रात का वो…
तेरे लिए दुआएँ माँगना,
क्या बताने पर…
ये सब समझ पाओगे,
बोलो वादा करोगे…
फिर तन्हा छोड़ के ना जाने का,
बादल
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